बायोफ्लोक
बायोफ्लोक क्या है ?
बायॉफ्लोक मछली पालन के सबसे आधुनिकतम तरीकों में से एक हैं। यह तालाब मछली पालन के विकल्प के रूप में बहुत लोकप्रिय हो गया है। इस विधि में मछली पालन टैंकों में किया जाता है। यह एक कम लागत वाली तकनीक है जिसमें मछली के लिए विषाक्त पदार्थ जैसे अमोनिया, नाइट्रेट और नाइट्राइट को हेतेरोत्रोफिक बैक्टीरिया (Heterotrophic bacteria ) के द्वारा फ़ीड में परिवर्तित कर दिया जाता है। टैंकों में मछलियां जो वेस्ट निकालती है और मछलियों के बचे हुए खाने को बैक्टीरिया के द्वारा प्यूरीफाई किया जाता है। यह बैक्टीरिया मछली के 20 प्रतिशत मल को प्रोटीन में बदल देता है।
टैंक में मछली पालन करने से कम जगह,कम समय और कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त किया जाता है। अर्थात तालाब की तुलना में Biofloc (बायोफ़्लोक) में मछली उत्पादन में लागत मूल्य कम आता है, तथा उत्पादन अधिक होता है|
बायोफ्लोक की विशेषतायें और लाभ।
- इस तकनीक का सिद्धांत पोषक तत्वों को रीसायकल करना है।
- बायोफ्लोक फ़ीड का एक अतिरिक्त स्रोत देते हुए मछली के संस्कृति के पानी को साफ करने में मदद करता है।
- यह एक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रिया है।
- उच्च घनत्व पर मछली के पालन के लिए कुछ विशेष प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता होती है। बायोफ्लोक इसके मूल में एक उचित उपचार प्रणाली है।
- पानी का आदान –प्रदान सिमित होने के कारण, मछलियों को संक्रमण और बिमारियों से दूर रखा जा सकता है
फीड का खर्च आधा कैसे हो जाता है?
मछली जो भी खाती है उसका 75 फीसदी वेस्ट( मल) निकालती है.वो वेस्ट( मल) उस पानी के अंदर ही रहता है, मछली का बचा हुआ खाना भी पानी के अन्दर ही रहता है , उसी वेस्ट को शुद्ध करने के लिए बायोफ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें heterogenenic बैक्टीरिया होता है जो इस वेस्ट को प्रोटीन में बदल देता है, जिसको मछली खाती है ,इस तरह से मछली के आधे फीड की बचत हो जाती है. यानि अगर तालाब में चार बोरी दाना देना पड़ता है तो आपको बायोफ्लॉक विधि से दो ही बोरा दाना देना पड़ेगा। फीड का खर्च तालाब की तुलना में बायोफ्लॉक में आधा हो जाता है |
तालाब और बायोफ्लॉक (biofloc) तकनीक में अंतर
तालाब में सघन मछली पालन (fish farming) नहीं हो सकता क्योंकि ज्यादा मछली डाली तो तालाब का अमोनिया बढ़ जायेगा, तालाब गंदा हो जाएगा और मछलियां मर जाऐंगी। मछली पालकों को तालाब की निगरानी रखनी पड़ती है क्योंकि मछलियों को सांप और बगुला खा जाते हैं जबकि बायो फ्लॉक वाले टैंक के ऊपर शेड लगाया जाता है।इससे मछलियां मरती भी नहीं है और किसान को नुकसान भी नहीं होता है। एक हेक्टेयर के तालाब में हर समय एक दो इंच के बोरिंग से पानी दिया जाता है जबकि बायो फ्लॉक विधि में चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है। गंदगी जमा होने पर केवल दस प्रतिशत पानी निकालकर इसे साफ रखा जा सकता है। टैंक से निकले हुए पानी को खेतों में छोड़ा जा सकता है।
कितनी और किस प्रकार की मछलियों का पालन बायोफ्लॉक मे किया जा सकता है ?
एक टैंक से साल में कम से कम 12 सौ किलो मछली का उत्पादन किया जा सकता है. टैंक में सिधी, पंगास, तिलापिया, देसी मांगुर, रोहू और कतला पाला जा सकता है. जो बाजार में दो सौ रुपए किलो बिकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक 10 हजार लीटर पानी में तीन-चार महीने में ही 5 से 6 क्विटल मछली का उत्पादन किया जा सकता है।
किसान भाई अगर आप खेती किसानी के साथ साथ मछली पालन से पैसे कमाना चाहते हैं तो आप बायोफ्लॉक विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं. पैसे नहीं होने पर आप मत्सय विभाग से संपर्क कर सकते हैं जो आपके लिए लोन की व्यवस्था करवा सकता है . साथ ही आवश्यक दिशानिर्देश और सलाह भी देता है ।
बायोफ्लोक बनाने में क्या -क्या सामान लगता है ?
बायोफ्लोक टैंक का बेस कैसे बनता है ?
बायोफ्लोक टैंक कैसे बनाते हैं ?
- 10,000 लीटर Biofloc कों फिट करने के लिए 4 मीटर समतल जमीन की आवश्यकता होगी
- उस जमीन पर एक सेंटर पॉइंट निर्धारित करेंगे जो की 2 मीटर पर होगा | इसके बाद सर्किल के सेंटर पॉइंट पर यानि की 2 मीटर पर एक लकड़ी गाड़ेंगे और दूसरे छोर पर भी लकड़ी लगायेंगे, दोनों लकड़ियों को एक दागे से बांधेंगे और बिलकुल एक प्रकाल की तरह दूसरे छोर की लड़की को पकड़ कर गोल घूम जायेंगे
- इस प्रकार एक गोल आकार बनाते हैं जिसका रेडियस 2 मीटर का और टोटल diameter 4 मीटर का होगा |
- फिर 180 ईट, लाल बालू ,सीमेंट को मिला कर एक सर्रकल का निर्माण कर लेते है
- उसके बाद सरकल के बीचों –बीच 3 इंच वाला PVC पाइप लगाते हैं | पाइप के दोनों छोर पर 3 इंच PVC L-Band लगाते हैं |
- Biofloc टैंक बनाने के लिए निम्नलिखित वस्तुयों का इस्तेमाल किया जाता है
- PVC पाइप, Tarpaulin 650gsm ,10000 /15000/20000 liter , wire mesh,protertor liner, pvc पाइप 3इंच, बैंड 3इंच |
- उसके बाद सर्किल के अन्दर 3-4 mm का वायरमेश लगाते हैं | पतली लोहे की तार से उसको बांध देते है ताकि वायर मेष मजबूती से लगा रहे
- उसके बाद protector liner लागा देते है उसको प्लास्टिक की पतली रस्सी की सहायता से वायर मेष में बांध देते है, इसको लगाने से tarpaulin की life बढ जाती है
- अब हम tarpaulin को अंदर व बाहर सही तरीके से लागा देते हैं
- जो tarpaulin बाहर निकला है उसे प्लास्टिक की पतली रस्सी की सहायता से वायरमेश में बांध देते है जिससे वह अंदर की ओर न झुके|
- अब सर्किल के भीतर जो हमने L-Band लगाया था उसके ऊपर का trapaulin क्रॉस शेप में काटकर उसमे 3 इंच का एक PVC पाइप लगायेंगे |
- इस PVC पाइप में छोटे छोटे छिद्र कर देते हैं, जिससे पानी का निकास बाहर की ओर हो सके |
- बाहर की ओर भी L-Band में 3 इंच का एक PVC पाइप लगायेंगे जो की Biofloc टैंक से एक या दो फिट ऊंचा होगा | पाइप के चारों तरफ एक चौकौर आकार का गड्ढा बनायेंगे, जिससे पानी उसी गड्डे में गिरे और फिर उसी गड्डे में एक पाइप लगा देंगे जिससे पानी का निकास किसी खेत या नाले में कर सकते हैं |अब हम एयर पाइप की सहायता से एयर स्टोन लागा कर टैंक में लटकाने के लिए टैंक एक छोर से दुसरे छोर पर बांध कर एयर स्टोन से लगे पाइप में लटका देते है जो हमारे रिंग बुलोअर से ज़ुरा रहता है |टैंक में पानी डालने के लिए समरसेबुल का परियोग किया जायेगा
मछली के बच्चे का चुनाव /कैसे डाले टैंक में डाले ?
- मछली की बॉडी कम्प्लीट होनी चाहिये
- मछली में कोई बीमारी नहीं होनी चाहिये |
- मछली का सारा जीरा एक साइज़ का होना चाहिये, 3 से 4 इंच का जीरा सब से अच्छा है|
- मछली चंचल होनी चाहिए ,अलसी नहीं होनी चाहिए जो छूने पर रेसपोंड करे
- मछली का शारीर चमकीला साफ सुथरा हो |
- मछली का जीरा सुबह या शाम को ही लाये |
- लायी गयी मछली को पोलीथिन बिना खोले टैंक के पानी में पैकेट सहित रखे 20-30 मिनट पानी में रखे ताकि पोलीथिन में मछली के साथ जो पानी है उसका तापमान तथा टैंक के पानी का तापमान बराबर हो जाये |
- इसके बाद मछली को 2 से 3 मिनट तक potassium पेर्मग्नते के घोल में रखे
- उसके बाद पोलीथिन को खोल कर मछली को टैंक में धिरे-2 ढाल दे|
- मछली छोड़ने के बाद ,एक दिन या 12 घंटे तक मछलियों को खाना नहीं देते उसे एक दिन के बाद खाना दें |
पानी की तैयारी
- टैंक में पानी भरेंगे
- पहला दिन- सबसे पहले सुबह में नमक डालेंगे
- पहला दिन -शाम को चूना डालेंगे
- दूसरा दिन- सुबह में Probiotic /गुड डालने से पहले PH चेक करेंगे , यदि PH 7-8 के बीच होगा फिर उसमे मोलास्सेस डालेंगे | यदि PH कम हुआ तो इसमें और चुना डालेंगे और Aeration बनायें रखेंगे |
- Probiotic और गुड डालने के बाद पानी को 15 दिनों के लिए तैयार होने के लिए छोड़ दें
- मछली के बीज को पानी में डालने से पहले 1 मिलीग्राम प्रति लीटर potassium permaganate में 1 से 2 मिनट के लिए रखा जाता है ताकि सारे संक्रमण दूर हो जाएँ, क्यूंकि मछलियों को एक पानी से निकालकर दूसरी जगह लाया जाता है जिससे की उनका वातावरण बदलता है
- तालाब में वायु संचारण (aeration) बनाये रखेंगे
वायु – संचारण (Aeration)
- तालाब में वायु- संचारण बनाये रखना बहुत ही आवश्यक है ताकी मछलियों को सांस लेने में दिक्कत ना हो
- हम AC006 (55 W) या AC008 (65 W) मोटर के जरिये पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को बनाये रख सकते हैं
- PVC पाइप को हम एक तरफ मोटर से कनेक्ट करते हैं और दूसरी तरफ एयर बॉल्स (Air Balls ) से और तल्ल्ड में चरों तरफ बीचा देते हैं. 2000 स्क्वायर फीट तालाब में आपको करीब 12 एयर बॉल्स की ज़रुरत पड़ेगी
- हम paddle-wheel aerator भी यूज़ कर सकते हैं
नमक, चूना और प्रोबायोटिक की मात्रा
- पाउडर चूने का इस्तेमाल करना चाहिये
- यह पोषक तत्व कैल्शियम उपलबध कराने के साथ जल की अम्लीयता पर नियंत्रण रखता है।
- हानिकारक धातुओं को अवक्षेपित करता है।
- विभिन्न परजीवियों के प्रभाव से मछलियों को मुक्त कराता है तथा तालाब के घुलनशील आँक्सीजन स्तर को ऊंचा उठाता है।
- नाईट्रोजन उर्वरकों के लगातार उपयोग से तथा जैविक पदार्थो से उत्पन्न अम्लों के कारण मिट्टी की अम्लीयता बढ़ जाती है। फलस्वरूप् अम्लीयता की अवस्था में डाला गया फाँस्फोरस युक्त उर्वरक निरर्थक चला जाता है। अतः उर्वरकों के पूर्ण उपयोग के लिए अम्लीयता को उदासीनता के स्तर तक लाना आवश्यक है। चूने की मात्रा मिट्टी की अम्लीयता के आधार पर निश्चित की जाती है।
- 50 ग्राम प्रति हज़ार लीटर चूना डालेंगे | यदि PH 7 से 8 के बीच है तो 25 ग्राम प्रति हज़ार लीटर चूना डालेंगे |
- नाइट्राइट की विषाक्तता को कम करने के लिए
- मछलियों को बीमारियों से बचाता है
- मछलियों के स्वास्थ्य को अच्छा रखता है और बीमार मछलियों को ठीक करता है
- मछलियों के तनाव का स्तर कम रखता है
- नमक, चूने की एक परत भी तैयार करने में सहायता करता है जिससे पैरासाइट, बैक्टीरिया और अन्य बीमारी फ़ैलाने वाले कीटाणु मर जाते हैं
- 1000 लीटर में 1 किलो नमक डालेंगे
- Probiotic के रूप में अक्सर गुड का प्रयोग किया जाता है| मोलास्सेस को पिघलाकर ठंडा कर लेते हैं और लिक्विड रूप में पानी में डालते हैं |
- 1000 लीटर में 100 ग्राम मोलास्सेस डालेंगे |
- Probiotic एक तरह का बैक्टीरिया होता है जो waste पदार्थ को प्रोटीन फीड में परिवर्तित कर देता है |
- Probiotic phytoplankton /zooplankton के ग्रोथ को बढाता है जो मछलियों का आहार होती हैं
- यह अमोनिया को नाइट्रेट और नाइट्रेट को नाइट्रस ऑक्साइड में तोड़ता है और फिर उसे अहानिकारक नाइट्रोजन में परिवर्तित कर देता है |
- अलग अलग प्रोबिओटिक के अलग अलग डोसेस हो सकते हैं हैं, यह बाज़ार से खरीद सकते हैं या घर पर भी बना सकते हैं |
सबसे बड़ी समस्या : पानी की तापमान
- इस सिस्टम में पानी के तापमान को नियंत्रित करने की बड़ी समस्या होती है क्योंकि हर मछली अलग-अलग तापमान में रहती है। उदाहरण के लिए पंगेशियस। ये मछली ठंडे पानी में नहीं रह पाती है तो इसके लिए पॉलीशेड बनाते हैं और तापमान को नियंत्रित करने की व्यवस्था बनाये रखना अनिवार्य है |
- इस तकनीक में 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि इसमें जो बैक्टीरिया पलता है वो ऐरोबिक बैक्टीरिया है जिसको 24 घंटे हवा की जरुरत होती है तभी वो जीवित रहता है। ऐसे में किसान भाई इनवर्टर के जरिए भी टैंकों में बिजली की सप्लाई कर सकते हैं |
बायोफ्लोक में कितने प्रकार की मछली का पालन कर सकते है तथा सबसे जायदा प्रोडक्शन किन- किन मछलियों का होगा ?
बायोफ्लोक में किसी भी प्रकार की मछली डाल सकते है बस आप को मछली का सीड कितने दिनों का है ये पता कर लेना है मछली का सीड 40दिन से ऊपर का होना चाहिए | एक बायोफ्लोक टैंक (10000liter) में 1200 से 1500 तक catfish तथा 1000 से 1200 तक IMC, EMC डाल सकते हैं |
आप यदि बहुत अच्छा उत्पादन लेना चाह्ते है तो पंगास, koi, मांगुर, सिंघी पाले इनको हम 500 से 800 gm का कर के बेच सकते हैं लेकिन देसी मांगुर और सिंघी का वजन 200 – 250 gm से ज्यादा नहीं होता है तथा रोहू ,कतला,नैनी ,ग्रास कार्प तथा कॉमन कार्प का पालन कर सकते है लेकिन इनका साइज़ बड़ा होगा | आप 250 – 300 तक की मछली निकाल कर बेच दें नहीं तो ये सर्वाइव नहीं कर पायिगी।
मछलियों के बीमार होने के पहले लक्षण
- खाना कम खाना
- मछली का तेजी से इधर उधर घूमना
- दूसरे मछली पर आक्रमण करना
- तालाब की दीवार से शारीर को रगड़ना
- अधिकांश मछली का ऊपर में तैरना
- जीवाणु
- प्रोटोजुआ
- कवक
- कश्तेशियन
पालन के दौरान अन्य सावधानियाँ :-
- मछली के खाने में gut probiotic का प्रयोग नियमित करनी चाहिए।
- मोलेसेस एवं जलीय प्रोबायोटिक का प्रयोग साप्ताहिक करना चाहिए।
- विटामिन “C” का प्रयोग भी नियमित अंतराल पर करने से रोग से बचाव में कारगर होगा।
- प्रतिदिन भोजन की मात्रा एवं Water Parameters का Monitoring अति आवश्यक है।